आज यह ब्लॉग मैं मुम्बई को समर्पित करता हूँ। कोई कविता नहीं, कोई दार्शनिकता नहीं सिर्फ जो मैं मुम्बई से निकलने के बाद याद कर रहा हूँ बस उसी के बातें!!!!
१४ जून २००७ जब मैं हज़ारो लोगों की तरह मुम्बई में आपने लिए नौकरी को तलाश में आया था। नहीं जनता था की मुम्बई से प्यार करने लगूंगा। मैं मुम्बई की हर चीज करता हूँ कहे वह लोकल ट्रैन की भीड़ ही या पैर तक बहता पसीना।
तो आज बात करते हैं उसी प्यार की जो मैं पिछले ९ सालो से करता आया हूँ।
सबसे पहले बात करते हैं मुम्बई की जीवन रेखा कही जाने वाली लोकल ट्रेन्स की..
आपको एक किस्सा सुनाता हूँ. एक बार हम ट्रैन में सफर कर रहे थे की एक मौलवी साहब ट्रैन में चढ़े उनके पीछे हज़ारो लोग चढ़े और पूरी ताक़त से उनकी और धक्का आया, और धक्का इतना ज़ोर से था की वे कह पड़े " या अल्लाह "। थोड़ी देर के बाद जब सब कुछ सामान्य हो गया तब उन्होंने पास में खड़े व्यक्ति से कहा पता है खुदा ने लोकल ट्रैन क्यों बनायीं क्योंकि वैसे तो आदमी से आदमी कभी ठीक से गले मिलेंगे नहीं कम से कम यहाँ एक दूसरे से गले तो मिल रहे हैं। गले क्या मिल रहे है आपन हक़ समझ कर गले तो पड़ रहे हैं। सच ही बात कर रहे थे मौलाना साहब. आज के ज़माने में लोग एक दूसरे के सामने ठीक से मुस्कुराते तक नहीं और मुम्बई लोकल में लोग इन दूसरे से गले मिलते हैं, आगे वाले के कंधो पैर समाचार पत्र रख कर पढ़ते हैं। यदि आप चाहे तो आपका बैग भी सही ठिकाने पर रखेंगे और तो और पूरे रस्ते उसका ध्यान भी रखेंगे।
अगर मुम्बई ऐसा शहर है तो कोई इससे क्यों प्यार न करे.
मेरे पास ऐसे कई किस्से हैं मुम्बई लोकल के बारे में। और यकीन मानिये हर किस्से में मुम्बई की अच्छाई छुपी है।
बात करते हैं मुम्बई के खाने की।
अक्सर घर वाले पूछते हैं की मुम्बई ने तुजे दिया ही क्या है। शुरुवाती दिनों में एक बार घर से निकले और अगर रस्ते में भूख लगे तो जेब में पैसे तो ज्यादा होते नहीं थे तो ज्यादा नहीं सिर्फ ४ रुपये का वड़ा पाव खाइये और मस्त आगे बढिए। और वह भी स्पेशल सुख चटनी साथ.
अगर आप जवेरी बाजार मैं हैं तो भगत ताराचंद के यहाँ जाना न भूले. कहते हैं गुजरातियों के लिए छाछ ही बियर है भगत ताराचंद ने सच कर दिखाया बियर की बोतल में छाछ परोसते हैं। हा हा हा
और आप बटर रोटी मंगाइये और मक्खन का पूरा क्यूब पाइये। दिल खुश हो जायेगा सच कह रहा हूँ।
आप गेट वे ऑफ़ इंडिया के पास जाकर छोटे मिया के यहाँ खाना खाये बगैर तो न ही आये तो अच्छा है। मैं तो मांसाहारी नहीं हूँ पर जिन्हें मांसाहारी कहना पसंद है उनके लिए तो यह जन्नत है जन्नत।
इसी के आसपास के क्षेत्र में कही बेहतरीन होटल्स हैं जैसे की अगर बीरियानी की इच्छा है तो डेल्ही दरबार चले जाइए। अगर पूरी थाली आराम से बैठ कर कहानी हो तो शिवालय चले जाइये (सी एस टी स्टेशन के पास) .
अगर बहेतरीन पाव भाजी खानी है तो सामने कैनन पाव भाजी पैर चले जाइए. उसी एक शरबत वाला है उसका जीरा मसाला भुलाये नहीं भूलता।
आइये मैं एक लिस्ट ही बना देता हूँ कहाँ क्या अच्छा मिलेगा.
ठाणे - स्टेशन के बहार कुञ्ज विहार का पूरी भाजी, मिस्सल पाव
घाटकोपर - राजवाड़ी में डोसा उसी के पास डिश गोला
भांडुप - स्टेशन के पास गणेश वड़ा पाव
घाटकोपर - वेस्ट में खाऊ गली की हर आइटम.
दादर - श्री कृष्णा वड़ा पाव, ईस्ट में उडीपी
CST - शिवालय थाली के लिए,
कैनन - पाव भाजी उसके नज़दीक शरबत उसके थोड़ा आगे जाके डोसा स्पेसिअल्ली मैसूर मसाला
उसके सामने आराम वड़ा पाव का वड़ा पाव , मिसल पाव , खरवस , फलाहारी मिसल, पियूष , साबूदाना वड़ा, फलाहारी पूरी भाजी,
कोलाबा - बड़े मियां, शेर ए पंजाब,
गिरगांव चौपाटी : बेचेलर्स आइसक्रीम.
मुम्बई सेंट्रल - सरदार पाव भाजी
अँधेरी - MIDC कैफ़े (TCS गेटवे पार्क ऑफिस के पास)
दिलीप सैंडविच
जो डोसे आपने घाटकोपर में खाये उसके बच्चे लोग के हाथ के डोसे
चाइना टाउन होटल अँधेरी ईस्ट स्टेशन के पास एक डोसा वाला है उसके यहाँ के बनाना डोसा..
मीरा रोड - पराठा हाउस, बालाजी रेस्टोरेंट
विरार - स्टेशन से बहार आते ही चाय.
नन्ही सी सूचि आपके लिए....
आप ये न सोचिये की मुम्बई में मैं सिर्फ कहना मिस कर रहा हूँ रहा हूँ। मुम्बई के एक अगल उर्जा है जिसे शब्दो में नहीं कहा जा सकता..
और भी लिखूंगा मैं मुम्बई के बारे में.. पढ़ते रहिये मेरे ब्लोग्स.
आपका
अंकित
१४ जून २००७ जब मैं हज़ारो लोगों की तरह मुम्बई में आपने लिए नौकरी को तलाश में आया था। नहीं जनता था की मुम्बई से प्यार करने लगूंगा। मैं मुम्बई की हर चीज करता हूँ कहे वह लोकल ट्रैन की भीड़ ही या पैर तक बहता पसीना।
तो आज बात करते हैं उसी प्यार की जो मैं पिछले ९ सालो से करता आया हूँ।
सबसे पहले बात करते हैं मुम्बई की जीवन रेखा कही जाने वाली लोकल ट्रेन्स की..
आपको एक किस्सा सुनाता हूँ. एक बार हम ट्रैन में सफर कर रहे थे की एक मौलवी साहब ट्रैन में चढ़े उनके पीछे हज़ारो लोग चढ़े और पूरी ताक़त से उनकी और धक्का आया, और धक्का इतना ज़ोर से था की वे कह पड़े " या अल्लाह "। थोड़ी देर के बाद जब सब कुछ सामान्य हो गया तब उन्होंने पास में खड़े व्यक्ति से कहा पता है खुदा ने लोकल ट्रैन क्यों बनायीं क्योंकि वैसे तो आदमी से आदमी कभी ठीक से गले मिलेंगे नहीं कम से कम यहाँ एक दूसरे से गले तो मिल रहे हैं। गले क्या मिल रहे है आपन हक़ समझ कर गले तो पड़ रहे हैं। सच ही बात कर रहे थे मौलाना साहब. आज के ज़माने में लोग एक दूसरे के सामने ठीक से मुस्कुराते तक नहीं और मुम्बई लोकल में लोग इन दूसरे से गले मिलते हैं, आगे वाले के कंधो पैर समाचार पत्र रख कर पढ़ते हैं। यदि आप चाहे तो आपका बैग भी सही ठिकाने पर रखेंगे और तो और पूरे रस्ते उसका ध्यान भी रखेंगे।
अगर मुम्बई ऐसा शहर है तो कोई इससे क्यों प्यार न करे.
मेरे पास ऐसे कई किस्से हैं मुम्बई लोकल के बारे में। और यकीन मानिये हर किस्से में मुम्बई की अच्छाई छुपी है।
बात करते हैं मुम्बई के खाने की।
अक्सर घर वाले पूछते हैं की मुम्बई ने तुजे दिया ही क्या है। शुरुवाती दिनों में एक बार घर से निकले और अगर रस्ते में भूख लगे तो जेब में पैसे तो ज्यादा होते नहीं थे तो ज्यादा नहीं सिर्फ ४ रुपये का वड़ा पाव खाइये और मस्त आगे बढिए। और वह भी स्पेशल सुख चटनी साथ.
अगर आप जवेरी बाजार मैं हैं तो भगत ताराचंद के यहाँ जाना न भूले. कहते हैं गुजरातियों के लिए छाछ ही बियर है भगत ताराचंद ने सच कर दिखाया बियर की बोतल में छाछ परोसते हैं। हा हा हा
और आप बटर रोटी मंगाइये और मक्खन का पूरा क्यूब पाइये। दिल खुश हो जायेगा सच कह रहा हूँ।
आप गेट वे ऑफ़ इंडिया के पास जाकर छोटे मिया के यहाँ खाना खाये बगैर तो न ही आये तो अच्छा है। मैं तो मांसाहारी नहीं हूँ पर जिन्हें मांसाहारी कहना पसंद है उनके लिए तो यह जन्नत है जन्नत।
इसी के आसपास के क्षेत्र में कही बेहतरीन होटल्स हैं जैसे की अगर बीरियानी की इच्छा है तो डेल्ही दरबार चले जाइए। अगर पूरी थाली आराम से बैठ कर कहानी हो तो शिवालय चले जाइये (सी एस टी स्टेशन के पास) .
अगर बहेतरीन पाव भाजी खानी है तो सामने कैनन पाव भाजी पैर चले जाइए. उसी एक शरबत वाला है उसका जीरा मसाला भुलाये नहीं भूलता।
आइये मैं एक लिस्ट ही बना देता हूँ कहाँ क्या अच्छा मिलेगा.
ठाणे - स्टेशन के बहार कुञ्ज विहार का पूरी भाजी, मिस्सल पाव
घाटकोपर - राजवाड़ी में डोसा उसी के पास डिश गोला
भांडुप - स्टेशन के पास गणेश वड़ा पाव
घाटकोपर - वेस्ट में खाऊ गली की हर आइटम.
दादर - श्री कृष्णा वड़ा पाव, ईस्ट में उडीपी
CST - शिवालय थाली के लिए,
कैनन - पाव भाजी उसके नज़दीक शरबत उसके थोड़ा आगे जाके डोसा स्पेसिअल्ली मैसूर मसाला
उसके सामने आराम वड़ा पाव का वड़ा पाव , मिसल पाव , खरवस , फलाहारी मिसल, पियूष , साबूदाना वड़ा, फलाहारी पूरी भाजी,
कोलाबा - बड़े मियां, शेर ए पंजाब,
गिरगांव चौपाटी : बेचेलर्स आइसक्रीम.
मुम्बई सेंट्रल - सरदार पाव भाजी
अँधेरी - MIDC कैफ़े (TCS गेटवे पार्क ऑफिस के पास)
दिलीप सैंडविच
जो डोसे आपने घाटकोपर में खाये उसके बच्चे लोग के हाथ के डोसे
चाइना टाउन होटल अँधेरी ईस्ट स्टेशन के पास एक डोसा वाला है उसके यहाँ के बनाना डोसा..
मीरा रोड - पराठा हाउस, बालाजी रेस्टोरेंट
विरार - स्टेशन से बहार आते ही चाय.
नन्ही सी सूचि आपके लिए....
आप ये न सोचिये की मुम्बई में मैं सिर्फ कहना मिस कर रहा हूँ रहा हूँ। मुम्बई के एक अगल उर्जा है जिसे शब्दो में नहीं कहा जा सकता..
और भी लिखूंगा मैं मुम्बई के बारे में.. पढ़ते रहिये मेरे ब्लोग्स.
आपका
अंकित
2 comments:
Wonderful page from Mumbai diary... Ankitbhai
Thank you Bhai..
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