Tuesday, March 22, 2016


Mere ghar ek mehman ko aana hai..
Aakar hum sab ko hasana hai..
Nanhi si jamhai aur kilkari ka shor..
Nanhe se haatho me aage ki dor..
Chehre ki muskan se sabko lubhana hai
mere
Ghar ek nanhe mehman ko aana hai….





कब था वो दिन आखरी बार.....
महसूस हुआ कुछ पहली बार...
जिंदगी के बवंडर में फसें हम ऐसे...
की याद नहीं कब हँसे थे हम पिछलीबार...

वो दोस्तों की महफ़िल..
वो अपनों  का आना जाना...
पापा की आँखे और माँ का प्यार...
ये सब हुआ कब आखरी  बार...

चंद नोटों के खातिर हम...
छोड़ आये बचपन की गालियां ....
दिखती दौलत को कमाने की खातिर...
अनजान खजाने को छोड़ आये..

ना जाने कब आएगा वक़्त मुस्कुराने का...
फिर उन अहातों में लौटने का...
वो झूलों पर झूलने का...
पेड़ की शाखों पर चढ़ फल तोड़ने का...

चलो मिलकर बनाये कुछ ऐसा मन्ज़र...
आने वालो को मिले वही गलियां और अहाते..
उनको न हो कभी पिछली बार का गम...
उनके लिए तो हो बस खुशियों का समंदर...





સપનાંઓ