Thursday, December 1, 2016

मेरा देश बदल रहा है...

मेरा देश बदल रहा है।

विमुद्रीकरम यानि Demonitization आज कल चर्चा में है..

शायद मेरी यह पोस्ट पढ़ कर कुछ बुद्धिमान नागरिक कहेंगे की मैं मोदी भक्त हूँ। कुछ हद तक सही भी है। मुझे भारत सरकार के इस कदम से अच्छा लगा अब आप इसे मोदी भक्ति कहे तो ये ही सही.

चलिए मेरे नज़रिये से देखते हैं इस पूरी घटना को। बात करते हैं कुछ फायदों की कुछ नुकसानों की

नोट : मैं कोई अर्थशाष्त्री नहीं हूँ । यह राय सिर्फ एक आम आदमी की सोच दिखती है।

मैं विमुद्रीकरण को अब नोटबंदी कहूंगा क्योंकि कहीं न कहीं हमारे देश में हिंदी की दशा आम जनता की दशा से अधिक ख़राब है. शायद मेरी यह पोस्ट आज कल के नौजवान पढ़ भी नहीं पाएंगे क्यों की इसे कूल भाषा में नहीं लिखा गया..

मुद्दे को आगे बढ़ता हूँ. नोटबंदी से कुछ ऐसे फायदे जो एक अर्थशाष्त्री नहीं देख सकता :-

१. भारत की जनता में ८ नवम्बर से कोई हिन्दू या मुसलमान नहीं है। सब पैसो के लिए लाइन में लगने वाले आम आदमी हैं. कोई दलित नहीं कोई आरक्षित नहीं। सब महज़ आम आदमी माना मोदी साहब हिंदुत्व को ही आगे बढ़ाते हैं और इस बाद भी उन्होंने भारत में छुपे हिंदुत्व को  निकाला। जाना सब धर्म सामान है और सब बस इंसान हैं। कहते हैं हिंदुत्व कोई धर्म नहीं जीवन जीने का तरीका है तो शांति से लाइन में खड़े होकर सरकार को या बैंक को एक स्वर में गालिया देना भाई चारे को ही तो बढ़ा रहा है. वो कहते हैं न यदि आप किसी के लिए अच्छे न बन सके तो क्या हूआ बुरे बन कर सामने वालों को दोस्त बना दिया.

२. लोग मितव्ययी ही गए. मेरा मतलब है कम पैसे खर्च कर गुज़ारा करने वाले। पर मोदी जी ये बात तो महात्मा गाँधी ने कही थी की फ़िज़ूल खर्च बंद करो और आपने उनकी बात मान ली. उनपर तो आपके विरोधियों का अधिकार है। आप उनकी बात मान सकते हैं क्यों आप दोनों ही देश का भला चाहते हैं । पर आपने तो आम आदमी को १९४७ में पंहुचा दिया। बहुत खूब...

३. भाई भाई को तकरार और बूढ़े माँ बाप को वृद्धाश्रम भेजने के प्रोग्राम को ख़तम कर दिया । हिंदुत्व का एक और पैमाना जिस पर आपने लोगों को जीने पर विवश कर दिया. भाई भाई का झगड़ा ख़तम. माँ बाप का अकेला पैन ख़तम. कम से कम ढाई लाख के लिए तो बच्चो ने माँ बाप से अच्छे से बात की। पर हमारे विरोधी मित्रो को तो सिर्फ लाइन खड़ा वह व्यक्ति दिख रहा है जिस पर यमराज बैठे ही है और वह पैसा निकलने एटीएम जा पंहुचा. चलो ये भी अच्छा ही हूआ कम से कम उस मरने वाले गरीब को थोड़ी पब्लिसिटी तो मिली.

४ सेहत सुधरेगी लोगों को जब थोड़ी देर खड़े रहेंगे तो कसरत होगी तो दवाइयों का खर्च बचेगा.

हाँ इस बात से थोड़ा नुक्सान भी हूआ है। जैसे  की

१. कुछ आराम पसंद लोगो को थोड़ी तकलीफ उठानी पद गयी। जो लोग गरीबो को दबाते थे आज उनके साथ लाइन में खड़े रहने को मजबूर हैं।

२. वो कहते हैं न की जब दिवार में कील ठोकनी हो तो हथौड़ी के प्रहार से आस पास को मिटटी तो तकलीफ होती है । उसी तरह बड़ी मछली को जाल में फ़साने के लिए छोटी मछली को जान की बाज़ी लगनी पड़ती है ।

३. सबसे बड़ा नुकसान तो कुछ अराजक लोगों का हूआ है मीडिया उन्हें कवर ही नहीं कर प् रही है । कई दिनों से मैं भाई कन्हिया कुमार की गरीबी (बड़ी गाड़ी वाली)  को मिस कर रहा हूँ। कई दिनों से आरक्षण के प्यासे हार्दिक पटेल को मिस कर रहा हूँ । गुर्जरो का ट्रैन रोकना मिस कर रहा हूँ।

और एक चेनल से यह पता चला की यह लोग जो आराक्षण की राह में बैठे हैं उनसे आछे तो हमारे आदिवासी भाई बंधू हैं जिन्होंने बस्तु विनिमय प्रणाली को अपना कर एक उदहारण प्रतुत किया है। कुछ पाठक जो वास्तु विनिमय नहीं समझते उनके लिए एक उदहारण देना चाहता हूँ को यदि मेरे पास गेहू अधिक है जिसकी कीमत २० रुपये प्रति किलो है और मुझे चावल चहिये जो ४० रुपये प्रति किलो हैं। तो मैं १ किलो चावल २ किलो गेहू से खरीद सकता हूँ.। जो हम बचपन में करते थे। मुझे तेरी कलम पसंद है तू मेरा कंपास रख ले मैं तेरी कलम रख लेता हूँ.

तो मेरा मेरे प्यारे देशभक्तो से निवेदन है की व्यवस्था का हिस्सा बने उसे तोड़े नहीं । अन्यथा जिन बुद्धिजीवियों ने अवार्ड लौटाए थे उनसे कहीं ज्यादा पढ़े लिखे लोग हैं जिन्हें समझ में आरहा है की जो हो रहा है ठीक हो रहा है वे लोग आपको वापिस भेज देंगे।

मेरे प्यारे मित्रो से अनुरोध है की आक्रोश दिखाना है तो वानखेड़े की लाइन में १००० रुपये देने के बाद भी घंटो लाइन में खड़े रहते हो वहां दिखाओ. मंदिरो में मस्जिदों में गुरुद्वारों में घंटो हाथ में हार फूल लोबान लिए खड़े रहते हो वहां दिखाओ। क्यों ये सब आपसे पैसा लेकर भी तकलीफ दे रहे हैं। हमसे कम यहाँ आपसे कोई कुछ ले तो नहीं रहा। .

मेरा देश बदल रहा है बदलाव का हिस्सा बने व्यवधान न बने। बदलाव से थोड़े समाज तकलीफ रहती है पर हमेशा को शांति हो जाती  है ।

जय हिन्द जय भारत. 



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